Sunday, March 8, 2020

काश कभी महिला दिवस मनाने की जरूरत नहीं पड़ती


एक तो औरत, कुदरत का खूबसूरत तोहफा
और साथ ही संसार रूपी नाटक की महत्वपूर्ण पात्र बनाई
फिर कहाँ चुक हो गयी  और किस काल में?
एक औरत को कमजोर और आदमी को ताकतवर बताया
अरे मूर्खों अगर किताब और विज्ञान को सही से पढ़ा होता
तो आदमी - औरत दोनों का भ्रम मिट जाता हैं
दोनों को ही अपनी-अपनी विशेषता पता चल जाती...
तो ऐसी बुरी स्थिति कभी ना होती
कि आज होली दीवाली के जगह महिला दिवस मनाते
औरत के बखान में भाषण और कविताएँ बनानी नहीं पड़ती
औरत की मजबूती दिखाने के लिए सबूत जुटाने नहीं पड़ते...
मानते हैं गाड़ी पीछे करने में गाड़ी को ठोक डालती हैं
पर ये भी जानो , अँधेरे में से तुम्हारी खोई जुराब ढूंढ लाती हैं
हां बात सच हैं कि रास्तों में गुम जाती हैं
पर अपने घर में  हर पत्थर, ईंट की भी location बता देती हैं
एक तरफ़ रोटी पकाती एक तरफ सब्जी
तीसरी तरफ बच्चे को पढ़ाती
हाँ ये multi Tasker हैं  सो ये औरत ही सम्भव कर पाती
आदमी को कहाँ कुछ enjoy करना आता हैं?
उनका मकसद तो target पूरा करने का ही होता हैं
ब्याह शादी हो या कोई और पार्टी उन्हे तो सिर्फ काम निपटाना आता हैं
ये तो औरत हैं जो अपनी हँसी ठोली से इन अवसर को खास बना डालती
छोटी सी बात पर खुश छोटी छोटी बातो पर दुखी हो जाती हैं
वो होती हैं सब का मन लगा रहता हैं
बेवजह की गपशप से घर में रौनक बनाए रखती हैं
माँ बनते वक़्त एक आदमी की क्षमता से तीन गुना अधिक दर्द भी खुशी से सह जाती हैं
फिर कैसे कोई आदमी किसी औरत को शारीरिक रूप से कमजोर बोल जाते हैं?
संवेदना, अगाध प्रेम, ताकत, सम्रपण , इतना कुछ हैं औरत में
फिर भी आदमी की नज़रों में औरत कमजोर रह जाती हैं
अगर आदमी अपनी माँ, बहन, पत्नी की खूबी को समझते
तो हमारे समाज मे औरत के साथ अपराध खत्म हो जाते
और हम यहाँ महिला महिला सशक्तिकरण चिल्ला नहीं रहे होते
औरत को कमजोर बनाने में खुद औरत का पूरा हाथ रहता हैं
कही हिंदी में पढ़ा था औरत ही औरत की दुश्मन हैं
आज बड़े हो कर बखूबी जाना हैं
दूसरी औरत के चरित्र पर उंगली उठाने का काम एक औरत ही कर रही होती
वो ही दूसरी औरत के बुरे चरित्र का प्रमाणपत्र बना रही होती हैं
अगर एक सांस ने झेला बहुत कुछ अपने जमाने में
तो नए जमाने में बेटी बहू को भी उसी तरीके से सता रही होती है
औरत ही औरत को कमजोर बना रही होती हैं
यदि हम सभी खुद से प्रण ले
एक औरत को कमजोर समझने की किसी भी गतिविधि में भाग नहीं लेगे
या तो उनको ऐसा करने से रोकेगे
या उसको करारा जवाब दे डालेगे
दोस्तो फिर क्या पता किसी दिन महिला दिवस मनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी
जब औरत के अस्तित्व के महत्व की समझ पूरे संसार को हो जाएगी

2 comments:

  1. उत्तम विचार... समाज को इस बाबत जागरुक होने की बहुत आवश्यकता है...

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  2. I've lost your number.. please whatsapp me....

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काश कभी महिला दिवस मनाने की जरूरत नहीं पड़ती

एक तो औरत, कुदरत का खूबसूरत तोहफा और साथ ही संसार रूपी नाटक की महत्वपूर्ण पात्र बनाई फिर कहाँ चुक हो गयी  और किस काल में? एक औरत को कम...