Wednesday, March 4, 2020

मैं पागल और मेरी संगी 'पागल' बारिश


ये भी कोई बात हुईं?
मार्च के महीने में बारिश का शोर हैं!
पहले ही वायरस हैं और बढ़ने की आशंका हैं!
प्रकृति भी नाराज़ रहती हैं,
वो भी अनियमित रहती हमे नियम हीन देख कर
जब मन चाहे बारिश करती
जितनी मन चाहे सर्दी लंबी करती
अभी और है, इसका कहर
जो गर्मी में देखना बाकी हैं
यारो अब क्या क्या देखने को बचा हैं! मेरी जवाँ आँखो को😉
अभी तो 'तीस' ही सावन काटे हैं
पता नहीं कितने देखने बाकी हैं!
2 घंटों से बरस रहा रुकने का नाम नहीं हैं
मुझ पागल के लिए तो सही हैं कि मेरे संग कोई तो जगा हैं!
पर बाकी सब के लिए अच्छी बात नहीं..
किसान तो चिंता में सोया नहीं होगा, गेंहूं की फसलों की बर्बादी देख
कुछ वैज्ञानिक अध्ययन में होगे बिन मौसम बारिश के परिणाम सोच
इस बीच ठंडी हवाओं के झोकों की बात ही निराली हैं
बारिश की बूँदे अपनी ही लय ताल से  सरगम सुना रही हैं
बिन संगीत, संगीत की महफिल जमा रही हैं
ये नीचे गिर बूंदे कच्ची मिट्टी की खुश्बू का एहसास करा रही हैं
मैं तो पागल मेरे साथ पागल ये बारिश खुद ही खुद से बात किए जा रही हैं

4 comments:

  1. बेमौसमी बारिश... अच्छा चित्रण किया...
    वैसे तीस साल की जवाँ आंखों को अभी बहुत से सावन देखने हैं। 😊😊

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 05 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी अत्यन्त आभारी हूँ मैम

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  4. I've lost my phone as well as your number... Please whatsapp me....

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